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Saturday 3 January 2015

बवासीर (Piles or Haemorrhoids)

परिचय
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गुदाद्वार के अंत में जो शिराएं होती है उनमें सूजन आ जाने या बढ़ जाने को ही बवासीर कहते हैं। जब यह शिराएं सूज या बढ़ जाती है तब मस्सा या बलि कहते हैं। गुदाद्वार की इन शिराओं में सूजन गुदा के अंदर या बाहर हो सकती है। गुदा के अंदर की सूजन या मस्सों को अंतर्बलि कहते हैं और बाहर की सूजन या मस्सों को बहिर्बलि कहते हैं।
जब बवासीर में एक मस्से की शिरा सूज जाती है तो उसे बवासीर की एक मस्सा कहते हैं तथा जब दो शिरायें सूज जाती है तो उसे बवासीर के दो मस्सें कहते हैं। कभी-कभी शिराएं सूजकर अंगूर के गुच्छे के समान हो जाती हैं तो उसके बवासीर के कई मस्सें कहते हैं। इस प्रकार के लक्षण स्त्रियों में अधिकतर गर्भावस्था के समय में नज़र आती है।
बवासीर दो प्रकार की होती है
खूनी बवासीर :- अंदर की बवासीर से खून निकलता है इसलिए इसे खूनी बवासीर कहते हैं।
बादी-बवासीर :- बाहर की बवासीर में दर्द तो होता है लेकिन उनसे खून नहीं निकलता है इसलिए इसे बादी-बवासीर कहते हैं।

बवासीर रोग होने का कारण :-
  • मलत्याग करते समय में अधिक जोर लगाकर मलत्याग करना।
  • बार-बार दस्त लाने वाली दवाईयों का सेवन करना।
  • उत्तेजक पदार्थों का अधिक सेवन करना।
  • कोलाइटिस के कारण से दस्त लग जाना।
  • शराब का अधिक मात्रा में सेवन करना।
  • पेचिश रोग कई बार होना।
  • निम्नस्तरीय चिकनाई रहित खुराक लेना।
  • घुड़सवारी करना।
  • गर्भावस्था के समय में अधिक कष्ट होना तथा इस समय में कमर पर अधिक कपड़ें का दबाव रखना।
  • रात के समय में अधिक जागना।
  • मूत्र त्याग करने के लिए अधिक जोर लगना।
  • पेशाब करते समय अधिक काखना।
  • मूत्र मार्ग में संकोचन होना या पुरुष ग्रंथि का कोई रोग होना।
  • मलाशय का कैंसर होना।
  • ठंडे पदार्थ, भींगी घास या खूब मुलायम चीज पर अधिक बैठे रहना।
  • अधिक मिर्च-मसालेदार भोजन का सेवन करना।
  • अधिक कब्ज की समस्या होना।
  • वंशानुगत रोग या यकृत रोग होना।
  • शारीरिक कार्य बिल्कुल न करना।
  • खूनी बवासीर को ठीक करने के लिए औषधियों का प्रयोग :-
ऐकोनाइट :-
बवासीर रोग होने पर चमकीला लाल खून निकले, उस खून में गर्मी महसूस हो, बवासीर में सुई की तरह चुभन हो तो रोग का उपचार करने के लिए ऐकोनाइट औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग करने से लाभ मिलता है।
बवासीर रोग से पीड़ित रोगी को बुखार भी हो जाता है और इसके साथ ही बेचैनी होती है, मस्सों में तेज दर्द होता है और गर्मी भी महसूस होती है, मस्से से श्लेष्मा या खून निकतला है। इस प्रकार के लक्षण होने पर रोग को ठीक करने के लिए ऐकोन की 3x मात्रा का प्रयोग करना उचित होता है।

हमेमेलिस :
खूनी बवासीर से पीड़ित रोगी के मस्सों से काला खून बह रहा हो, इसमें रोगी को हल्का-हल्का दर्द महसूस होता है, खून अधिक मात्रा में निकलता है, गुदा में तपकन महसूस होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हैमेमेलिस औषधि के मूलार्क या 6 शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।

नक्स वोमिका तथा सल्फर :
खूनी बवासीर को ठीक करने के लिए महीने में एक बार सल्फर की 1M मात्रा सेवन करके नक्स वोमिका की 30 शक्ति प्रतिदिन 3 बार सेवन करना चाहिए। जब सल्फर औषधि का प्रयोग रोग को ठीक करने के लिए करें तब इसके दो दिन पहले और पीछे कोई भी औषधि का प्रयोग न करें। ऐसा करने से दो-तीन महीने में ही आराम मिल जाता है।

डोलिकोस (म्युक्युना) :-
खूनी बवासीर रोग को ठीक करने के लिए डोलिकोस औषधि के मूलार्क का एक बूंद कुछ दिनों तक दो-तीन बार प्रतिदिन सेवन करने से लाभ मिलता है। इसके प्रभाव से कुछ ही दिन में बवासीर के मस्सों में से खून आना बंद हो जाता है।

फिकस रिलिजिओसा :
खूनी बवासीर को ठीक करने में डोलिकोस औषधि से लाभ न मिले तो फिकस रिलिजिओसा औषधि के मूलार्क की निम्न-शक्ति का प्रयोग करें, इससे लाभ मिलेगा।
फॉस्फोरस :-
खूनी बवासीर से पीड़ित रोगी जब मलत्याग करता है तो हर बार मलत्याग होने के बाद खून की पिचकारी सी छूटती है। ऐसे रोगी के इस रोग का उपचार करने के लिए फॉस्फोरस औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का उपयोग करना लाभकारी होता है। किसी भी अंग से खून आने पर इस औषधि से उपचार करना लाभदायक होता है।
बादी बवासीर को ठीक करने के लिए औषधियों का प्रयोग :-
एस्क्युलस औषधि की 3 शक्ति का प्रयोग खुश्क या बादी बवासीर रोग को ठीक करने के लिए किया जा सकता है। खुश्की के कारण से रोगी को ऐसा महसूस होता है कि गुदा में छोटे-छोटे तिनके ठुसे पड़ें हैं। इस प्रकार की बवासीर होने पर इसमें से खून भी निकलता है, साधारण तौर पर खून नहीं आता है, गुदा में जलन होने के साथ दर्द होता है। इस बवासीर से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए एस्क्युलस औषधि का उपयोग करना चाहिए
बादी बवासीर में जब अशुद्ध-रक्त द्वारा शिराओं में सूजन होकर मस्से बन जाएं तब इस अवस्था में रोग को ठीक करने के लिए एस्क्युलस औषधि उपयोगी होती है।

कोलिनसोनिया :
बादी बवासीर रोग से पीड़ित रोगी को अपने गुदाद्वार में ऐसा महसूस होता है कि जैसे इसमें तिनके ठुसे पड़े हैं और चुभन होती है। इसके साथ ही रोगी को कब्ज की समस्या रहती है, कब्ज के कारण से मलत्याग होता ही नहीं। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए कोलिनसोनिया की 30 शक्ति का उपयोग किया जा सकता है।

रस टॉक्स :
बादी बवासीर से पीड़ित रोगी जब मलत्याग करता है तो बवासीर के मस्से बाहर निकल आते हैं, कमर में दर्द होता है और गुदा पर बोझ महसूस होता है। ऐसा लगता है कि कोई चीज बाहर निकलने को जोर मार रही हो। इस प्रकार के लक्षण होने पर रोग को ठीक करने के लिए रस टॉक्स औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग करने से लाभ मिलता है।

म्यूरियेटिक ऐसिड :-
मस्से नीले रंग का होना, मस्सों को छूने से दर्द होना, बिस्तर पर चादर का स्पर्श भी सहन न होना, मस्सों को गर्म पानी से धोने पर आराम मिलना आदि लक्षण बादी बवासीर रोग से पीड़ित रोगी में हो तो उसके के रोग को ठीक करने के लिए म्यूरियेटिक ऐसिड औषधि की 3 शक्ति का उपयोग करने से फायदा मिलता है। यह बच्चों के बवासीर रोग को ठीक करने में भी उपयोगी है।

इग्नेशिया :-
बादी बवासीर रोग से पीड़ित रोगी में इस प्रकार के लक्षण हों जैसे- गुदाद्वार पर दबाव और बोझ बना रहना, बैठे तथा खड़े होने पर बवासीर में दर्द होना, चलने-फिरने से दर्द न होना या कम होना, मलत्याग करने पर जोर लगाने से कांच निकल आना, गुदा में जलन तथा दर्द होना, पतले दस्त होने पर भी गुदा में जलन होना, गुदा के अंदर से ऊपर तक दर्द होना आदि। ऐसे रोगी के इस रोग को ठीक करने के लिए इग्नेशिया औषधि की 200 शक्ति का सेवन करने से अधिक लाभ मिलता है।

नक्स :-
कब्ज की शिकायत होने के साथ ही बादी बवासीर होने पर रोग को ठीक करने के लिए नक्स औषधि की 30 शक्ति का उपयोग करना चाहिए

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